बुद्ध के जीवन का मध्य मार्ग….
जीवन मे सबकुछ समतल होणा चाहिये। ना कुछ कम ना कुछ जादा। हर बार अति करणे मे नुकसान ही होता है ओर कुछ ना करणे से भी नुकसान होता है। जीवन मे ज्यादा पैसा आने से दुख ही मिलता है ओर कुछ ना हो तो भी दुख का सामना करणा पडता है। रातभर जागणे से भी नुकसान ओर ना सोने से भी नुकसान। हम लोग सुख, संपत्ती के पीछे इतना दौडते है की जीवन का आनंद लेना ही भूल जाते है। इसीलिये हर व्यक्ती को समाधानी रहना चाहिये। समतल होणा चाहिये।
बुद्ध ने जिसको “मध्यम मार्ग” कहा है, आईये उसके बारे मे जाणते है…..
एक राजकुमार बुद्ध के पास दीक्षा लेने के लिये आया हुआ था। उसका नाम श्रोण था। वह राजकुमार था तो उसके पास कुछ कम नही था। जो चाहे वो पा सकता था लेकीन वह भोगी था, महाभोगी था। उसके भोग की कथाएं सारे देश में प्रचलित थीं। बुद्ध तक भी उसकी कथाएं बहुत बार पहुंची थीं। उसकी भोग ही भोग की जिंदगी थी। राजकुमार था उसको कुछ कम न था। रातभर जागता था। नाच,गाना,शराब और दिनभर सोता था। सीढ़ियां भी चढ़ता तो नग्न स्त्रियां सीढ़ियां के दोनों तरफ खड़ी कर रखी थीं, रैलिंग बना रखी थी नग्न स्त्रियों की। उनके कंधों पर हाथ रखकर वह ऊपर जाता। वह कभी महल के बाहर नहीं निकला था, गद्दियों से नीचे नहीं चला था। हमेशा फूलों की शय्या पर सोता था। कांटों का उसे पता ही नहीं था। जिंदगी को मौज मजे का साधन समझकर जी रहा था।
एक दिन वो बुद्ध का प्रवचन सुनने आया था। और लोग चमत्कृत ओर हैराण रह गये ये देखकर कि वह बुद्ध को सुनने आया है। और न केवल सुना, उसने तो खड़े होकर बुद्ध से प्रार्थना की कि मुझे दीक्षित करें, मैं भिक्षु होना चाहता हूं। लोगों को तो भरोसा ही नहीं आया, कहीं ऐसा तो नहीं कि ज्यादा पी गया है, कि अभी तक रात का खुमार नहीं उतरा है। उसके संगी-साथियों ने भी कहा कि आप क्या कह रहे हो, सोच-समझकर करे? उसने कहा, मैं थक गया हूँ, ऊब गया हू, सब देख लिया भोग। अब आनंद नही आ रहा। मैं दीक्षित होना चाहता हूँ। वो भिक्षु बनणे का प्रण ले चुका था। वह महल लौटा ही नहीं। वह संन्यस्त हो गया। संन्यासी हो गया। बुद्ध के भिक्षूओं ने बुद्ध से पूछा कि यह बड़ी चमत्कार की घटना है। आपने क्या किया? क्या जादू किया इस आदमी पर? ये कैसे बदल गया।
बुद्ध ने कहा, मैंने कुछ नहीं किया। यह है अतिवादी। यह एक अति से दूसरी अति पर जा रहा है। पेंडुलम जैसे डोलता है यह बड़ा खतरनाक आदमी है। एक अति से थक गया, अब दूसरी अति पर जा रहा है। और उन्होंने कहा, कुछ देर देखो तो समझोगे। पंद्रह दिन में ही सब को पता चल गया। जो आदमी कभी फुलो की गद्दियों से नीचे नहीं चला था, वह आदमी कांटों में चलने लगा। दूसरे भिक्षु तो पगडंडी पर चलते थे, बने हुए रास्ते पर चलते थे, वह कांटों में चलता था। उसने पैर लहूलुहान कर लिए, पैरों में घाव हो गए। दूसरे भिक्षु तो धूप होती तो वृक्ष की छाया में बैठकर आराम करते, वह धूप में ही खड़ा रहता। सर्दी होती तो दूसरे भिक्षु धूप में बेठते, वह जाकर छाया में बैठ जाता। वह उल्टा ही करता। भिक्षु तो एक बार भोजन करते दिन में, वह दो-चार दिन भूखा रहता और एकाध बार दो-चार दिन में भोजन करता, बस सप्ताह में दो बार से ज्यादा भोजन नही करता था। उससे उसका पुरा शरीर सूख गया। सुंदर देह था,काला पड़ गया। शरीर से सब मांस-मज्जा चली गई, हड्डी-हड्डी हो गया।

तब बुद्ध ने एक दिन उसके द्वार पर दस्तक दी, जिस झोंपड़े में वह ठहरा था। वह झोपडी तो पडी हुई हालत में थी। बुद्ध ने उससे पूछा, श्रोण, मैं एक प्रश्न पूछने आया हूँ। मैंने सुना है। कि तू जब राजकुमार था तो तू वीणा बजाने में बड़ा कुशल था। मैं यह तेरे से पूछने आया हूं कि वीणा के तार अगर बहुत कसे हों तो वीणा बज सकती है क्या?
उसने कहा, नहीं बजेगी, तार टूट जाएंगे। और वीणा के तार अगर बहुत शिथिल हों तो वीणा बज सकती है क्या?
उसने कहा : नहीं, तब भी नहीं बजेगी। बहुत शिथिल हों तो संगीत ही पैदा नहीं होगा, स्वर पैदा नहीं होगा।
तो बुद्ध ने पूछा, वीणा कैसी होनी चाहिए कि संगीत पैदा हो?
तो श्रोण ने कहा, तार कसना बड़ी कला की बात है। तार ऐसी स्थिति में होने चाहिए कि न तो ज्यादा कसे न ज्यादा ढीले छोडे। एक ऐसी स्थिति भी है तारों की, जब हम कह सकते हैं कि अब न तो ज्यादा कसे हैं, न ज्यादा ढीले हैं, न कसे हैं न ढीले हैं, ठीक मध्य में, समतल है। और जब वाणी के तार ठीक मध्य में होते हैं, तभी महा संगीत पैदा होता है।
तो बुद्ध ने कहा : यही मैं निवेदन करने आया हूं कि जो नियम वीणा के सम्बन्ध में सही है, वही नियम जीवन के सम्बन्ध में भी सही है। जीवन की वीणा में भी संगीत तभी पैदा होता है, जब तार न तो बहुत कसे हों न ढीले हों। देख तेरे तार बहुत ढीले थे। तब संगीत पैदा नहीं हुआ। और अब तूने तार बहुत कस लिए, अब तार टूटे जा रहे हैं, अब भी संगीत पैदा नहीं हो रहा है। तू एक अति से दूसरी अति पर चला जा रहा है। तो जीवन को सम्यक तरीकेसे जि। जिसमे अति का लवलेश ना हो।
