“ॐ भूर् भुवः स्वः। तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।।”
गायत्री महामंत्र वेदो का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है जिसकी महत्ता ओउम के लगभग बराबर मानी जाती है. यह यजुर्वेद के मंत्र ‘ॐ भूर्भुवः स्वः’ और ऋग्वेद मे भी इसका उल्लेख मिलता है. इस मंत्र में सवितुः देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है. इसे गायत्री देवी के स्त्री रूप में भी पूजा जाता है.
समस्त धर्म ग्रंथों में गायत्री की महिमा एक स्वर से कही गई. समस्त ऋषि-मुनि मुक्त कंठ से गायत्री का गुण-गान करते हैं. शास्त्रों में गायत्री की महिमा के पवित्र वर्णन मिलते हैं. गायत्री मंत्र तीनों देव, बृह्मा, विष्णु और महेश का सार है.
हिंदू धर्म मे गायत्री मां को पंचमुखी माना गया है जिसका अर्थ यह है की संपूर्ण ब्रम्हांड जल, वायू , पृथ्वी,अग्नी ओर आकाश के पाच तत्वो से बना है. संसार मे जितने भी प्राणी है, उनका शरीर भी इन्ही पाच तत्वो से बना है.इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर गायत्री माता प्राणशक्ती के रूप मे विद्यमान है. यही कारण है की गायत्री माता को सभी शक्तियो का आधार माना गया है, इसीलिये भारतीय संकृती मे बहोत महत्व दिया गया है.

गायत्री मंत्र : अर्थ सहित व्याख्या
“ ॐ भूर् भुवः स्वः। तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
ॐ : परब्रह्मा का अभिवाच्य शब्द
भूः : भूलोक
भुवः : अंतरिक्ष लोक
स्वः : स्वर्गलोक
त : परमात्मा अथवा ब्रह्म
सवितुः : ईश्वर अथवा सृष्टि कर्ता
वरेण्यम : पूजनीय
भर्गः: अज्ञान तथा पाप निवारक
देवस्य : ज्ञान स्वरुप भगवान का
धीमहि : हम ध्यान करते है
धियो :
बुद्धि प्रज्ञा
योः जो
नः हमें
प्रचोदयात् : प्रकाशित करें.
अर्थ: हम ईश्वर की महिमा का ध्यान करते हैं, जिसने इस संसार को उत्पन्न किया है, जो पूजनीय है, जो ज्ञान का भंडार है, जो पापों तथा अज्ञान की दूर करने वाला हैं, वह हमें प्रकाश दिखाए और हमें सत्य पथ पर ले जाए. उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें. वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे.
लाभ :-
गायत्री मंत्र का नियमित रुप से सात बार जप करने से व्यक्ति के आसपास नकारात्मक शक्तियाँ बिलकुल नहीं आती.
जप से कई प्रकार के लाभ होते हैं, व्यक्ति का तेज बढ़ता है और मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है. बौद्धिक क्षमता और मेधाशक्ति यानी स्मरणशक्ति बढ़ती है.
गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर होते हैं, यह 24 अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं.
इसी कारण ऋषियों ने गायत्री मंत्र को सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाला बताया है.
गायत्री उपासना कभी भी, किसी भी स्थिति में की जा सकती है. हर स्थिति में यह लाभदायी है, परन्तु विधिपूर्वक भावना से जुड़े न्यूनतम कर्मकाण्डों के साथ की गयी उपासना अति फलदायी मानी गयी है. तीन माला गायत्री मंत्र का जप 108 बार करणा आवश्यक माना गया है. शौच-स्नान से निवृत्त होकर नियत स्थान, नियत समय पर, सुखासन में बैठकर नित्य गायत्री उपासना की जानी चाहिए. इससे इच्छित फल प्राप्त होता है.
