क्रोध क्या है, नियंत्रण कैसे करें?
मन क्या है।
क्रोध को समजणे के पहले मन को समजणा जरुरी है। हमारा मन बहोत चंचल है। हर वक्त ये बदलता रहता है। ख़ुशी मे, मोह मे, क्रोध मे, हर क्षण,क्षण ये बदलता रहता है। हर चीज, मन मे ही उत्पन्न होती है ओर मन मे ही समाप्त होती है। हर गतीविधियो को समजणे के पहले मन को समझना बहोत आवश्यक है। मनोवैज्ञानिकों ने मन को दो भागों में बांटा है। एक होता है चेतन मन तो दूसरा अवचेतन मन। चेतन मन मस्तिष्क का वह भाग है जिसमें होने वाली क्रियाओं की जानकारी हमें होती है। यह चेतन मन वस्तुनिष्ठ एवं तर्क पर आधारित होता है। अवचेतन मन जाग्रत मस्तिष्क के परे मस्तिष्क का हिस्सा होता है, जिसकी हमें जानकारी नहीं होती तथा अनुभव भी कम ही होता है। प्रेम, क्रोध, मोह, माया, ये सारी क्रिया मन मे घटीत होती है ओर इनकी प्रतिक्रियो को हम बाह्य रूप मे प्रकट करते है। ओर यही से सारी क्रिया, प्रतिकिया चालू होती है।

आज हम जानेंगे क्रोध के बरे मे…
क्रोध या गुस्सा एक भावना है। दैहिक स्तर पर क्रोध करने/होने पर हृदय की गति बढ़ जाती है; रक्त चाप बढ़ जाता है। यह भय से उपज हो सकता है। भय व्यवहार में स्पष्ट रूप से व्यक्त होता है जब व्यक्ति भय के कारण को रोकने की कोशिश करता है। क्रोध मानव के लिए हानिकारक है। क्रोध कायरता का चिह्न है। सनकी आदमी को अधिक क्रोध आता है उसमे परिस्थितीयो का बोझ झेलने का साहस और धैर्य नही होता। क्रोध संतापयुक्त विकलता की दशा है। क्रोध मे व्यक्ति की सोचने समझने की क्षमता लुप्त हो जाती है और वह समाज की नजरो से गिर जाता है। क्रोध आने का प्रमुख कारण व्यक्तिगत या सामाजिक अवमानना है। उपेक्षित तिरस्कृत और हेय समझे जाने वाले लोग अधिक क्रोध करते है। क्योंकि वे क्रोध जैसी नकारात्मक गतिविधी के द्वारा भी समाज को दिखाना चाहते है कि उनका भी अस्तित्व है। क्रोध का ध्येय किसी व्यक्ति विशेष या समाज से प्रेम की अपेक्षा करना भी होता है। वास्तविकता यह है कि जब हमें गुस्सा आता है तो हम ज्यादा दूर तक नहीं सोच पाते बल्कि उससे होने वाले परिणाम के बारे में भी नहीं सोच पाते । बस दिमाग में रहता है तो वो है गुस्सा, गुस्सा, और गुस्सा। आपका दिमाग तभी संतुलित होकर सोच सकता है जब आप आपके अन्दर किसी भाव की अधिकता न हो। आपने देखा होगा कि जब हम बहुत खुश रहते हैं तब भी हम सही से नहीं सोच पाते। जब कोई भाव हमारे ऊपर पूरी तरह से हावी होता है तो सबसे ज्यादा हमारी “सोचने की क्षमता” (Ability of thinking) प्रभावित होती है।

क्रोध को नियंत्रित कैसे करे…
जब कभी तुम्हे यह पता चले कि तुम्हें क्रोध आ रहा है तो इसे सतत अभ्यास बना लो कि क्रोध में प्रवेश करने के पहले तुम पांच गहरी सांसें लो। यह एक सीधा-सरल अभ्यास है। पांच गहरी सांसे, स्पष्टतया क्रोध से बिलकुल संबंधित नहीं है और कोई इस पर हंस भी सकता है कि इससे मदद कैसे मिलने वाली है? लेकिन इससे मदद मिलेगी। इसलिए जब कभी तुम्हें अनुभव हो कि क्रोध आ रहा है तो इसे व्यक्त करने के पहले पांच गहरी सांस अंदर खींचो और बाहर छोड़ो। ये एक प्रकारसे योग की प्रक्रिया है। इससे क्या होगा? इससे बहुत सारी चीजें हो पायेंगी। क्रोध केवल तभी हो सकता है अगर तुम होश नहीं रखते। और यह श्वसन एक सचेत प्रयास है। क्रोध व्यक्त करने से पहले जरा होशपूर्ण ढंग से पांच बार अंदर-बाहर सांस लेना। यह तुम्हारे मन को जागरूक बना देगा। और जागरूकता के साथ क्रोध प्रवेश नहीं कर सकता। और यह केवल तुम्हारे मन को ही जागरूक नहीं बनायेगा, यह तुम्हारे शरीर को भी जागरूक बना देगा, क्योंकि शरीर में ज्यादा ऑक्सीजन हो तो शरीर ज्यादा जागरूक होता है। अगर तुम पांच बार सांस अंदर बाहर करोगे तो जागरूकता की इस घड़ी में, अचानक तुम पाओगे कि क्रोध विलीन हो गया है। दूसरी बात, तुम्हारा मन केवल एक-विषयी हो सकता है। मन दो बातें साथ-साथ नहीं सोच सकता; यह मन के लिए असंभव है। यह एक से दूसरी चीज में बहुत तेजी से परिवर्तित हो सकता है। दो विषय एक साथ एक ही समय मन में नहीं रह सकते। मन का गलियारा बहुत संकरा होता है। एक वक्त में केवल एक चीज वहां हो सकती है। इसलिए यदि मन मे क्रोध होगा तो, तो क्रोध के अतिरिक्त कुछ वहां नही होता है, लेकिन यदि तुम पांच बार सांस अंदर-बाहर लो, तो अचानक मन सांस लेने के साथ संबंधित हो जाता है। वह दूसरी दिशा में विचार करेगा। अब वह अलग दिशा में बढ़ रहा होता है। और यदि तुम फिर क्रोध की ओर सरकते भी हो, तो तुम फिर से वही स्थिती मे नहीं रह सकते क्योंकि वह घड़ी जा चुकी है। क्रोध का समय जा चुका होता है। गुरजिएफ ने कहा था, जब मेरे पिता मर रहे थे, उन्होंने मुझसे केवल एक बात याद रखने को कहा, ‘जब कभी तुम्हें क्रोध आये तो चौबीस घंटे प्रतीक्षा करो, और फिर वह करो जो कुछ भी तुम चाहते हो। अगर तुम चौबीस घंटे बाद जाकर कत्ल भी करना चाहते हो, तो फिर नही कर सकोगे। लेकिन चौबीस घंटे प्रतीक्षा करना होगा।’ चौबीस घंटे तो बहुत ज्यादा है, चौबीस सेकंड बहोत है। “प्रतीक्षा करना” तुम्हें बदल देगा। वह ऊर्जा जो क्रोध की ओर बह रही थी, नया रास्ता अपना लेती हैं। यह वही ऊर्जा है। यह क्रोध बन सकती थी। पुराने शास्त्र कहते हैं की, ‘यदि कोई अच्छा विचार तुम्हारे मन में आता है, तो उसे स्थगित मत करो, उस काम को तुरंत करो। और यदि कोई बुरा विचार मन में आता है, तो उसे स्थगित कर दो,उसे वक्त दो, उसे तत्काल कभी मत करो। लेकिन हम बहुत चालाक हैं, बहुत होशियार । हम सोचते हैं, और जब भी कोई अच्छा विचार आता है, हम उसे स्थगित कर देते हैं। ओर बुरे काम को जल्दी कर देते है।
एक कहाणी है उससे आप समज सकते है…
मार्क ट्वेन ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि वह किसी चर्च मे एक पादरी व्याखान को सुन रहे थे। व्याख्यान तो असाधारण था और उसने अपने मन में सोचा, आज मुझे दस डॉलर दान करने हैं। पादरी अद्भुत है, उसका व्याखान भी अद्भुत है। चर्च की मदद करणी चाहिए! उसने निर्णय ले लिया कि व्याख्यान के बाद उसे दस डॉलर दान करने हैं। दस मिनट और हुए और वह सोचने लगा कि दस डालर तो बहुत ज्यादा होंगे। पांच से काम चलेगा। दस मिनट और हुए और उसने सोचा, ‘यह आदमी तो पांच के लायक भी नहीं है। अब वह कुछ सुन भी नहीं रहा था। अब वो उस दस डॉलर के लिए चिंतित था। उसने इस विषय में किसी से कुछ नहीं कहा था, लेकिन अब वह अपने को यकीन दिला रहा था कि यह तो बहुत ज्यादा था जिस समय तक व्याख्यान समाप्त हुआ, उसने कहा, मैंने कुछ न देने का फैसला किया है। और जब वह आदमी मेरे सामने चंदा लेने आया, वह आदमी जो इधर से उधर जा रहा था चंदा इकट्ठा करने के लिए. मैंने कुछ डॉलर उठा लेने और चर्च से भागने तक की बात सोच ली थी।’ मन की विचार शीलता को देखीये।

मन परिवर्तीत होता रहता है …..
मन निरंतर परिवर्तित होता है। मन कभी गतिहीन नहीं होता, यह एक प्रवाह है। तो अगर कुछ बुरा विचार मन मे आ रहा है, तो थोड़ी प्रतीक्षा किजीए। आप मन को स्थिर नहीं कर सकते। मन एक प्रवाह है। बस, थोड़ी प्रतीक्षा करना और तुम बुरा नहीं कर पाओगे। लेकिन अगर कुछ अच्छा होता है और तुम उसे करना चाहते हो, तो फौरन उसे कर डालो क्योंकि मन परिवर्तित हो रहा है। कुछ मिनटों के बाद तुम उसे कर नही पाओगे । तो अगर वह प्रेमपूर्ण और भला कार्य है, तो उसे स्थगित मत करो। और अगर यह कुछ हिंसात्मक या विध्वंसक है, तो उसे थोड़ा-सा स्थगित कर दो। यदि क्रोध आये, तो उसे पांच सांसों तक स्थगित करना, और तुम क्रोध को भूल जाओगे । यह एक अभ्यास बन जायेगा हर बार जब क्रोध आये, पहले अंदर सांस लो और बाहर निकालो पांच बार । फिर तुम मुक्त हो वह करने के लिए, जो तुम करना चाहते हो। निरंतर इसे किये जाओ। यह आदत बन जाती है, तुम्हें इसके बारे में सोचने की भी जरूरत नहीं। जिस क्षण क्रोध प्रवेश करता है, तुम्हारे अंदर का रचनातंत्र तेज, गहरी सांस लेने लगता है। तुम सांस शांत और शिथिल लेने लगो, तो कुछ वर्षों के भीतर तुम्हारे लिए नितांत असंभव हो जायेगा क्रोध करना। तुम क्रोधित हो नहीं पाओगे। कोई अभ्यास, कोई सचेतन प्रयास तुम्हारे पुराने ढांचे को बदल सकता है। लेकिन यह कोई ऐसा कार्य नहीं है जो तुरंत किया जा सकता हो। इसमें समय लगेगा क्योंकि तुमने अपनी आदतों का ढांचा बहुत से जन्मों से बनाया है। यदि तुम एक जीवन में भी इसे बदल सको, तो यह बहुत जल्दी है। मन मे शांती आंतरिक अभ्यास से प्रात्प की जा सकती है। फरक इतना ही है की आप उसे कितना समय देते है। आंतरिक अभ्यास स्वयं में दृढ़ता से प्रतिष्ठित किया जा सकता है।
